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हे राम

सच
सच
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पिछले दिनों विधान सभा में लक्ष्‍मीपुर विधान सभा क्षेत्र के

विधायक अमरण मणि त्रिपाठी ने सोहगीबरवा जंगल में रह

रहे दस हजार वनवासियों की समस्‍या उठाया तो लगा कि

सालों से चली आ रही उनकी समस्‍या पर सरकार गम्‍भीर

होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह दुर्भागय है। इसलिए नहीं

कि इस मुद़दे पर बहस  नहीं हुई, बल्कि इसलिए कि महराजगंज

जनपद की यह समस्‍या दस हजारों लोगों को विकास की

 मुख्‍य धारा से दूर किये हुए है। इसके समाधान करने वाले भी

इस जनपद में मौजूद हैं। मसलन वन मंत्री फतेहबहादुर सिंह

जहां इसी जनपद के रहने वाले है वहीं विधान परिषद के

सभापति भी यहीं के हैं। बावजूद इसके इस समस्‍या पर किसी

की नजर नहीं टिक रही है। वह भी अमरण मणि के प्रयास

के बाद तो यह दुर्भाग्‍य नहीं है तो और कया है। दुर्भाय और

 भी है जो मैने रिर्पोटिंग प्रयास के दौरान खुद सोहगीबरवा के

के जंगल में देखा। विश्‍वास नहीं होगा लेकिन यह सच है कि

कभी जंगल को अपने हाथों से बसाने वाले और जंगल के ही

हो कर रह जाने वाले इन लोगों से लिया तो बहुत जा रहा है

लेकिन दिया कुछ नहीं जा रहा है। मसलन इनके बच्‍चों  के

लिए कोई स्‍कूल नहीं है। नौजवानों व बुजुर्गो के लिए काम

नहीं है। इनके कबीलो को न तो गांव का नाम दिया गया है

और न ही  इन्‍हें किसी गांव में शामिल किया गया है। इतना

जरूर है कि इन्‍हें संसदीय व विधायकी चुनाव में मतदान का

 अधिकार है। सांसद व विधायक इनका वोट लेने जाते भी हैं,

लेकिन लौट कर इनकी दशा देखने नहीं आते। हद तो यह है

कि सांसद विधायक चुनने वाले इन वनवासियो को अपना

ग्राम प्रधान चुनने का हक नहीं है, क्‍योंकि न ये किसी ग्राम

पंचयत के सदस्‍य है और न ही इनका कबीला ग्राम पंचायत

है। विडम्‍बना यह है कि इन्‍हें रोजगार देने के नाम पर नरेगा

का जाब कार्ड दिया गया है, लेकिन काम नहीं दिया जा रहा 

है। जिस भी गांव में काम के लिए जाते हैं वहां से यह कह

कर लौटा दिया जाता है कि तुम हमारे गांव के सदस्‍य नहीं

हो ऐसे में काम नहीं मिल सकता। यानी लेने को संसदीय व

विधान सभा चुनाव में इनसे वोट लिया जाता है पर देने के

नाम पर गांव की सदस्‍या तक नहीं दी जा रही है। हद तो

यह है कि जब कभी यह जंगल में रहने की अपनी दावेदारी

करते हैं तो इनसे चार पुश्‍तों के निवास का प्रमाण मांगा जा

है। अब मांगने वाले को कौन बताये कि इन बेचारों में इतनी

अक्‍ल कब रही कि ये अपने पुश्‍‍तों का हिसाब किताब रखें।

वन विभाग हिसाब के न मिलने से इन्‍हें अपना नहीं मानता

और राजस्‍व विभाग जंगली होने के कारण इन्‍हें कुछ भी नहीं

देता। ऐसे में इनमें पाने की उम्‍मीद भी नहीं बची है। उम्‍मीद के

के मेरे सवाल पर इनमे से दर्जनों का यही जवाब था कि

 किसी समय राम जी ने जंगल में रह रहे सुग्रीव को उनका राजपाठ वापस दि

लाया था। उन्‍हीं की नजर का हमे भी इंतजार है। साहबों व

सरकारों से ना उम्‍मीद ये वनवासी भी किसी राम के इंतजार

अब र्सिफ यही पुकार रहे है हे राम।

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