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श्रीगणेश भी निर्विरोध

सच
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बात उत्‍तर प्रदेश के विधान परिषद के सभापति गणेश शंकर पाण्‍डेय के गांव की है। शुक्रवार को जब मेरे कदम रिर्पोटिंग के लिए भारत नेपाल सीमा की ओर बढे तो पता चला कि कुछ दूर पर विधान परिषद सभापति गणेश शंकर पाण्‍डेय का गांव है। उसे देखने की उत्‍सुकता को रोक पाने में असमर्थ पाया तो उधर के लिए चल पडा। उत्‍सुकता गांव पर रिर्पोटिंग की नहीं थी बल्कि यह जानने की थी कि उनके गांव में उनका स्‍थान कहां है। उच्‍चन सदन की उच्‍च कुर्सी पर बिना किसी विरोध के तो वह विराजमान हो गये लेकिन उनके गांव की कुर्सी को ले‍कर कितना विरोध होता है। सच मानिए गांव पहुंचा तो एक नये सच से मुलाकत हुई। में यह तो जानता था कि उनकी राजनीति प्रधानों की राजनीति रही है और खुद पहली बार प्रधान ही निर्वाचित हुए थे, लेकिन यह नहीं जानता था कि विधान परिषद सभाप्रति के निर्वाचन में जिस तरह उन्‍हें किसी विरोध का सामना नहीं करना पडा उसी तरह जब उन्‍होंने गांव से राजनीति का श्रीगेणेश किसा तो भी किसी के विरोध का सामना नहीं करना पडा। यानी उनकी राजनीति का श्रीगेश भी निर्विरोध ही हुआ। पता चला कि गांव की परधानी से चलकर उच्‍च सदन के सभापति के कुर्सी तक पहुंचे गणेश शंकर पाण्‍डेय को संघषों के 28 साल बाद एक बार फिर किसी चुनौती का सामना नहीं करना पडा। वह जब गांव के प्रधान पद की लडाई लडने के साथ अपना राजनीतिक सफर शुरू करने के लिए मैदान में उतरे थे, तब भी माहौल ऐसा ही था। उनके खिलाफ समूचे गांव में से किसी ने मोर्चा नहीं खोला और इस बार की तरह तब भी वह अपना पहला चुनाव निर्विरोध जीते। अब जबकि राजनीतिक जीवन के 28 साल बाद वे उच्‍च सदन के उच्‍च कुर्सी पर विराजमान हुए हैं तो उनके चुनाव में दूसरी बार अहम शब्‍द निर्विरोध जुड गया है। गणेश्‍ा शंकर पाण्‍डेय के जीवन से एक तीसरा निर्विरोध भी गहरे जुडा हुआ है। वह है महराजगंज जनपद के उनके गांव देवपुर के ग्राम प्रधान का चुनाव। उनके पैतृक गांव में निवास करने वाले उनके भाई कृपाशंकर पाण्‍डेय ने बताया कि यहां तो समूचा गांव हर चुनाव में मिल बैठ कर निर्विरोध ग्राम परधान ही चुनता है। यह क्रम शुरू से अब तक चला आ रहा है। यानी निर्विरोध सभापति बने श्री पाण्‍डेय का गांव पंचायती राज व्‍यवस्‍था में निर्विरोध चुनाव का नजीर है और हर चुनाव में निर्विरोध का संदेश दे अपनी एका का परिचय देता है। तब भी जबकि पिछले चुनाव में उनके गांव की परधानी सुरक्षित कोटे में चली गयी। महिला प्रधान हुई, लेकिन गांव में मतदान की नौबत नहीं आयी। ठीक वैसे ही जैसे इस बार विधान परिषद में सभापति के लिए वोट डालने की नौबत नहीं आयी और गणेश शंकर पाण्‍डेय निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए। श्री पाण्‍डेय के लिए यह निर्विरोध शब्‍द गांव में भी दो बार इस्‍तेमाल हुआ। उन्‍होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत गांव की परधानी से की और एक बार नहीं बल्कि दो बार परधान चुने गए और वह भी निर्विरोध। एसे में अब यह देखना है कि शुरू से निर्विरोध ग्राम प्रधान चुनाता रहा उनका गांव अगले चुनाव में किस तरह का निर्णय लेता है। तब मतदान के दिन उनके गांव से लौट कर अपनो से इस ब्‍लाग के जरिये निर्विरोध राजनीति पर दूसरी बार चर्चा होगी।

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