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मुद़दो की छिनाझपटी के शिकार हुए शाहरूख

सच
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माई नेम इज खान के नायक शाहरूख खान को लेकर उठा बवाल वास्‍तव में किसी सोची समझी राजनीति का हिस्‍सा नहीं बल्कि मुद़दो की छिनाझपटी है। वास्‍तव में इन दिनों मुम्‍बई में ठाकरे परिवार के चाचा और भतीजे के बीच मुद़दो को पकडने की होड चल रही है। इस होड से अंजान शाहरूख ने बयान दे दिया तो पहले हम के चक्‍कर में बाल ठाकरे ने इसे मुद़दा बना दिया। वरना वह भीलीभांति जानते है कि शाहरूख के पहले वह स्‍वयं न केवल एक पाक क्रिकेटर के खेल की प्रशंसा कर चुके हैं बल्कि एक पाक खिलाडी के स्‍वागत में भी थे।
वास्‍तव में मुम्‍बई में ठाकरे राजनीति संकट के दौर में है। यह संकट किसी और ने नहीं बल्कि उनके राजनीतिक शिष्‍य रहे भतीजे राज ठाकरे ने पैदा की है। एसे में बहुत कुछ बदल गया है। मसलन, गैर मराठी, गैर मुम्‍बई और गैर हिन्‍दू को लेकर पहले शिवसेना मुद़दा बनाती थी और चाचा भतीजा साथ साथ उस पर सान चढाते थे। अब दोनों के रास्‍ते जुदा हैं तो इन मुद़दो के भुखे स्‍व नाम धन्‍य शेरो की भूख भी अलग.अलग है। चरने का मैदान महज महाराष्‍ट और खाने के नाम पर मराठी, व हिन्‍दू और महराष्‍ट जैसी महज तीन घास। इसमें पहले शिवसैनिक दौड लगाते थे लेकिन अब मनसे ने भी मन लगाना शुरू कर दिया है। इससे होड लग गयी है कि सबसे पहले कौन किस घास पर अपना कब्‍जा जमा लेता है। इसे तेज कर मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने कुछ नया नहीं किया है बल्कि अपने चचा से जुदा होने पर उनकी ही दिक्षा का उन्‍ही के खिलाफ इस्‍तेमान भर किया। इससे विधानसभा चुनाव का जो परिणाम आया वह बाल ठाकरे को विचलित कर गया। उन्‍हें लगा कि उनके ही भतीजे राज ठाकरे उनके मैदान पर कब्‍जा जमा रहे है। बस यही एक सोच है कि मुम्‍बई में ठाकरे राजनीति में इस बात की होड लग गयी कि गैर हिन्‍दू, गैर मराठी और गैर महराष्‍ट पर मौके बे मौके सबसे पहले कौन जहर उगल सकता है। राज ठाकरे विधान सभा में गैर मराठी और टैक्‍सी चालकों के लाइसेंस में गैर मराठी का मुद़दा उठा अभी बाल ठाकरे को पीछे छोडने का जश्‍न मना रहे थे और बाल ठाकरे उनके जश्‍न को देख गम कम करने के लिए कोई मुद़दा खोज ही रहे थे कि बेचारे शाहरूख ने अपना मुंह खोल दिया है। उन्‍हें नहीं पता था कि महराष्‍ट में अब मुंह खोलते वक्‍त एक तरफ नहीं बल्कि दो तरफ देखना होगा। पहले एक ही तरफ से संकट था अब दो तरफ से संकट है। दोनों के पास विकास से दूर राजीनति के महज तीन ही मुद़दे है जिसमें से एक भाषा के आधार पर भारत के हित में नहीं है तो शेष दो प्रान्‍त और धर्म के आधार पर एकता को चुनौती देता है। पर, राजनीति से दूर शाहरूख बदलते राजनीतिक स्‍वरूप को भांपे बगैर अपने मन की बात बोल गये तो इसे कहीं भतीजा न झटक ले इस चक्‍कर में चाचा ने बगैर सोचे समझे अपनी झोली में डाल लिया। इसी छिनाझपटी में शाहरूख फंस गये। यह और बात है कि भतीजे को जब चाचा के आगे निकलने का एहसास हुआ तो उन्‍होंने इस मुद़दे के बहाने अमिताभ बच्‍चन को लपेटने की कोशिश कर दी। याद दिलाया कि जब अमिताभ पाकिस्‍तान के कई कलाकारों के साथ होतें हैं तो शिवसेना क्‍यों नहीं विरोध करती।
खैर शाहरूख अपने बयान पर कायम रहे तो जनता ने भी इस बार ठाकरे परिवार की इस छिनाझपट राजनीति को बहुत महत्‍व नहीं दिया। वास्‍तव में जनता समूचे ठाकरे राजनीति को कोई खास महत्‍व नहीं देना चाहती है। बात चाहे राज ठाकरे की हो या बाल ठाकरे की। यह और बात है कि ये अपने गिरेबा में नहीं झांक रहे। वरना एक समय था जब महराष्‍ट में ही नहीं उत्‍तर प्रदेश के कई जनपदो में शिवसेना की जिला कमेटियां थीं। शिवसेना से चुनाव भी कुछ लोगों ने लडा, लेकिन हाल के दिनों में उत्‍तर प्रदेश व बिहार के खिलाफ जो विषमन ठाकरे राजनीति के गर्भ से हुआ उसने उत्‍तर प्रदेश में जहां शिवसेना के पक्ष में बोलने वालों को मूक बना दिया वहीं महाराष्‍ट से बाहर निकल कर अपने को शिवसैनिक कहने वालों के भी हौसले पस्‍त कर दिया। संजय निरूपम इसके प्रमाण है जो कभी महराष्‍ट में ही नहीं बल्कि उत्‍तर प्रदेश में भी शिवसेना का विकास तलाश रहे थे और आज वे कांग्रेस में हैं। शाहरूख की एक निजी व्‍यवसायिक राय पर जहर उगलने वाले बाल ठाकरे को सोचना चाहिए कि महाराष्‍ट में सभी पाट्रिया चुनाव लड़ने का हौसाल रख वहां पहुंचती हैं ओर चुनाव लडती भी हैं लेकिन क्‍या उनके या उनके भतीजे के पास यह हौसला है कि वे अपने ही देश में किसी अन्‍य प्रांत की सैर भी कर सकें। सही तो यह है कि शाहरूख का मुंह बंद कराने की सोचने वाले और गैर मराठियों के कदम मुम्‍बई में रोकने की कवायद में लगे ठाकरे परिवार ने मराठी भाइयों को अपने देश के अन्‍य प्रांत में जाने और उनके बारे में अपनी राय व्‍यक्‍त करने पर पाबंदी की नीव खडा कर दी है जो आर्थिक राजधानी मुम्‍बई के भविष्‍य पर सवाल भी खडा करती है। मेरा माना है कि पूरे देश को चाचा भतीजे की छिनाझपट राजनीति के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है वरना इन्‍हे तो हर वक्‍त तीन मुद़दो की खोज रहती है जिसमें से एक का हिस्‍सा बन गये शाहरूख खान।

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