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खबरों की भूख के कारण यूं तो हजारों बार पोस्टमार्टम हाउस का चक्कर लगाना पडा पर शनिवार जिस पोस्टमार्टम से समाना हुआ वह सच में गहरे सोचने को मजबूर कर गया। असल में यह न तो पोस्टमार्टम हाउस था और न किसी इंसान का पोस्टमार्टम। जगह था उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के मोहनापुर रेलवे क्रासिंग से सटे खुला मैदान और शव के रूप में मौजूद था जटायु के वंशजों यानी तीस गिद्धों का शव। पशु चिकित्सक अपनी ड़यूटी बजा रहे थे। लोग इस अदभुत शव विछेदन क्रिया को देखने के लिए जमा थे हो रहे थे। रिपोर्ट क्या आएगी, इसकी चिंता नही थी उत्सुकता थी लुप्तप्राय घोषित और पर्यावरण के मित्र कहे जाने वाले इन बेचारों की अकाल मौत के पीछे के कारण ढुढने की। खोज पूरी हुई तो बरबस ही मुंह से निकल पडा हे राम। यह सुनते ही बगल में खडे एक सज्जन ने कहा यह बेचारे तो हे राम भी नहीं कह पाये। कैसे के सवाल पर पता चला कि बुधवार को रेलवे लाइन पर एक कुत्ते की मौत हो गयी थी और उसका शव उसी पर पडा था। भूख के वशीभूत पर्यावरण मित्रों की टोली की नजर जब शुक्रवार को इस पर पडी तो वे रेल आने की चिंता से दूर रेलवे लाइन पर उतर गए। फिर तीसो एक साथ कुते को अपना भोजन बनाने लगे। इसी दौरान दुर्ग एक्सप्रेस रेल आयी और उनके गर्दन से होकर गुजर गयी। फिर देखते ही देखते एक सा्थ सभी गिद्धों की मौत हो गयी। पूरे विश्व की चिंता के मूल में शामिल गिद्धों के सम्वर्धन में लगी सरकारों और संस्थाओं के लिए यह बडा झटका है, लेकिन इसे भी बडी चिंता घटना में रेलवे की भूमिका उजागर होने पर सामने आयी। क्योंकि रेलवे लाइन पर कुत्ते का शव एक दो घंटे से नहीं बल्कि दो दिनों से पडा था। इस बीच न तो रेल पथ निरीक्षक और न ही गैंग-मैन ने रेलवे लाइन का निरीक्षण किया। अगर वे निरीक्षण किए होते तो शायद कुत्ते का शव हटवाते और गिद्ध यहां नहीं आते। रेलवे की इसी गलती से पर्यावरण मित्रों को कुत्ते के शव के माध्यम से रेलवे लाइन ने आमंत्रित किया। इतना ही नहीं घटना स्थल से मोहनापुर ढाला महज पन्द्रह मीटर की दूरी पर है। फिर भी वहां तैनात की-मैन ने न तो कुत्ते का शव हटवाया और न ही रेल प्रशासन को इसकी जानकारी दी। यही नहीं उसने गिद्धों की सुरक्षा के मद़देनजर दुर्ग एक्सप्रेस रेल को लाल झण्डी दिखाने की भी जहमत नहीं दिखाई। अलबत्ता वह रूटीन को अंजाम देते हुए हरी झण्डी लहरा दिया और दुर्ग पर्यावरण मित्रों के गर्दन पर चढ गयी। रेलवे की इस बडी गलती में दुर्ग रेल के चालक ने भी अपनी सहभागिता ही दर्ज करायी। जंगली क्षेत्र या उसके अगल-बगल से गुजरने की नियमों को ताक पर रखते हुए डयूटी बजाने के चक्कर में मात्र सीटी ही बजाया। तत्काल उडने में असमर्थ गिद्ध सीटी सुन डेढ सौ मीटर भागे भी लेकिन रेल की गति में कोई कमी न होने से एक झटके में सभी काल के गाल में समा गए। इसे रेल प्रशासन भले गंभीरता न ले लेकिन उसे यह पता तो जरूर होगा कि इस समय गिद्ध लुप्त प्राय पक्षियों की श्रेणी में शामिल हैं और उनकी घटती संख्या न केवल विश्व की चिंता है बल्कि उनके सम्वर्धन के लिए सरकार व संस्थओं द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में रेल प्रशासन की लारवाही से हुई इस क्षति की भरपाई सम्भव नहीं है। क्योंकि कृत्रिम रूप से गिद्धों के सम्वर्धन का प्रयास अभी कहीं भी संतोष जनक परिणाम नहीं दे पाया है। उनके पोस्टमार्टम से मिली इस दुखद खबर ने यह भी बता दिया कि जो लोग पूरे विश्व में जटायु के वंशजों की तलाश करते हुए उनकी वंशवृद्धि का अध्ययन कर रहे हैं उनके लिए मोहनापुर ढाले से सटा सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग पाठशाला साबित हो सकता है। क्योंकि यहां इन दिनों गिद्धों का जमावडा देखा जा रहा है पर नहीं दिख रही है तो उनके लुप्त प्राय हाने के प्रति संवदेना, जिसके कारण रेलवे की लापरवाही से एक झटके में कम हो गयी तीस गिद्धों की संख्या।
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