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बुधवार की शाम से लेकर गुरुवार की शाम तक एक पुल के लोकार्पण को लेकर बसपा और कांग्रेस की राजनीति हाई स्पीड चली। कांग्रेस ने इस मुद़दे को सड़क से लेकर संसद तक में उठाया तो बसपाई भी इसमें पीछे नहीं रहे। बसपाई ही क्यों एक प्रदेश की बहुमत वाली सरकार छटपटाती दिखी। छटपहाट के मायने यह कि बुधवार को अचानक लखनऊ में लोक निर्माण मंत्री ने न केवल आनन फानन में सोनिया जी के क्षेत्र डलमऊ रायबरेली के पुल का उद़घाटन कर दिया, बल्कि प्रशासन ने वहा जा रहे केन्द्रीय भू तल राज्य मंत्री आर पी एन सिंह का रास्ता रोक दिया। छटपटहाट का नतीजा गुरुवार की सुबह देखा गया जब बुधवार को पुल को नाम देने में चुकी सरकार ने गुरुवार को उससे अम्बेडर का नाम जोडते हुए एक पुल पर जा कर दुबारा लोकार्पण की तैयारी में लग गयी। उधर कांग्रेसी कार्यकर्ता विरोध स्वरूप पुल तक जाने के लिए निकल पडे तो उनकी पार्टी के सांसदों ने संसद में अपने हक के लिए बिगुल बजाया। इन सभी के लिए तथा संविधान और संसदीय मामलों के जानकारो के लिए यह चर्चा का विषय हो सकता है कि पुल के लोकर्पाण का हक किसका है। पर, जनता ने तो यही देखा जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत चरितार्थ हुई। सवाल यह भी नहीं है कि भैंस किसकी थी और लाठी किसने भांजा। यह भांजने वाले और भैंस पालने वाली जाने। जनता तो यह जानना चाहती है कि एक पुल पर अपना नाम चस्पा करने की जो तेजी बसपा व कांग्रेस के बीच दिखी वह किसी पुल के लम्ब्ति निर्माण को पूर्ण कराने में क्यों नहीं दिखती। इस डर से तो नहीं कि लोकर्पाण के समय किसी और की सरकार आ जाएगी। कम से कम बहुमत की सरकार में यह डर तो नहीं होना चाहिए। प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री ने जितनी तेज गति से राय बरेली के पुल को जनता को सौंपा उतनी तेज गति से प्रदेश के अन्य पुल का निर्माण क्यों नहीं पूरा करा रहे हैं। बात सोनियो जी के क्षेत्र की थी और और प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती जी के आनबान की थी तो दोनो दल सडक से संसद तक पहुंच गये, लेकिन उन जिलों और स्थानों पर पहुंचना किसकी जिम्मेदारी है जहां बीसों सालों से दर्जनों पुल अधूरे पडे हैं। उदारहण देखना हो तो अति पिछडे पूर्वाचल के गोरखपुर और बस्ती मण्डल के ही किसी जिले की यात्रा की जा सकती है। बस्ती मंण्डल के लोगों को आज भी आजमढ और अम्बेडकर नगर जाने के लिए गोरखपुर और अयोध्या की यात्रा करनी पड रही है। बीच में सरयू पर दो पुल प्रस्तावित हैं, कुछ का कुछ हिस्सा तैयार भी हो चुका है, पर इनके पूरा होने की कोई सूरत पिदले बीस से पचीस सालों से नजर नहीं आ रही है। गोरखपुर मण्डल का भी यही हाल है। देवरिया में ओवर ब्रिज का निर्माण केवल मुददा बन कर रह गया है। गोरखपुर में भी एक उपरगामी सेतु का निर्माण बिरबल की खिजडी जैसा ही चल रहा है। महराजगंज के दो पुल तो कब के पूरा होने की आस छोड चुके हैं। ऐसे में प्रदेश और केन्द्र के सडक व पुल मालिक मंत्रियों से मेरा यहीं सवाल है कि जो तेजी एक पुल के लोकार्पण को लेकर दिखी, जितना हल्ला इसके लोकापर्ण को ले कर हुआ, उतनी तेजी और उतना हल्ला देश व प्रदेश के सैकडो हजारो पुलो को समय पर पूरा कराने के लिए क्यों नहीं होता । अगर उन्हे लग रहा है कि पुलो पर आनन फानन में अपना नाम चस्पा कर देने भर से जनता उनको विकास पुरूष मान लेगी तो शायद वह भ्रम में हैं। क्योंकि मीडिया अब उनके नाम चस्पा होने से पहले उनकी मंशा को भी साफ करती जा रही है। देश की साक्षरता बढ रही है। ऐसे में आने वाले समय में यह सवाल और तेजी से उठेगा कि जो तेजी बुध्वार को लोकार्पण में दिखी वह परियोजनओं को समय से पूरा कराने में क्यों नहीं दिखती।
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