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हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, आपस में सब भाई भाई की कहावत सर्वोपरि है। इससे अलग जब एक भाई दूसरे भाई से कहे कि तुम धोती कुर्ता उतार अल्लाह बोलो। दूसरा कहे कि तुम टोपी उतार कर भगवान बोलो। तीसरा हे राम की जगह ओ गाड कहलवाने का अभियान चलाए तो सर्वधर्म समभाव खतरे में ही कहा जाएगा। वह भी तब जब इसके लिए न केवल धन खर्च किया जाए बल्कि यहां तक कहा जाए कि तुम्हारे राम के बजाय हमारे गाड में सब कुछ ठीक करने की अधिक शक्ति है, तो मामला और गम्भीर हो जाता है। ऐसी ही अभियान में जुटी हैं इसाई संस्थाएं। इनके निशाने पर दलित पीछडे और गरीब ही हैं। महराजगंज जिला के आधा दर्जन गांव इनकी गतिविधियों के केन्द्र बन गये हैं और यहां की दलित बस्तियों में अब हे राम की बजाय ओ गाड गुजने लगा है। यहां के घरों में हिन्दू धर्म के बजाय इशाई धर्म से जुडे साहित्य देखे जा रहे हैं और रोज जहां ये खुद इशाई की प्रार्थना दुहरा रहे हैं वहीं सप्ताह में एक दिन यहां पादरियों को दौरा भी हो रहा है। वे यहां गरीबी और बीमारी को आधार बना कर बडे ही आसान तरीके से अपनी गतिविधियों को अंजमा दे रहे हैं। वे धर्म पर अर्थ की चोट कर जहां गरीबों को अपना धर्म स्वीकार करने के लिए तैयार कर रहे हैं वहीं यह कह कर भी गरीबों को आसान तरीको से अपने पाले में कर ले रहे हैं कि ओ गाड कहने से बीमारी तक ठीक हो जाती है। ऐसे में पूरे देश में जहां हिन्दुओ व मुसलमानों को लेकर राजनीति हो रही है वहीं इसाई अपने तरीके से एक नये विवाद के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। यानी यहां के हिन्दू धर्म को सीधे तर पर इसाई धर्म से संकट नजर आ रहा है। यह और बात है कि मजबूरी में ही सही दलित और गरीब उनके शिकार हो रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है। बल्कि सवाल यह है कि ऐसी बस्तियों में हमारी सरकार व हमारी धार्मिक संस्थाएं गरीबी उन्मुलन के लिए कोई कार्य क्यों नहीं कर रही है। मंदिरों, मठों में खैरात बांटने वाले और हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने लोग इशाइयों की तरह क्यों नहीं ऐसी गरीब बस्तियों में भी काम कर रहे हैं। वे कभी इस पर बोलते भी हैं तो मात्र पादरियों को निशाने पर लेने तक ही सारी उर्जा खर्च कर डालते हैं। जबकि इसके ठीक उलट पादरी वहां जाते हैं और किसी दूसरे धर्म की बात करने के बजाय अपने धर्म का प्रचार करते हुए वहां के लोगों की जरूरत के हिसाब से धन खर्च करते हैं। एसे में इसाई अप्रत्यक्ष रूप से ही सही धर्म पर अर्थ की चोट कर भक्ति के सुर बदल रहे है। लोग अब हे राम की जगह ओ गाड कहने लगे है। हिन्दू मुस्लिम से लडने में लगा है और पादरी उसके गरीब भाइयों को इसाई बनाने में जुटे हैं। दलितो, पीछडों व गरीबों के प्रति जारी उपेक्षा एवं इस पर बढ रही पादरियों की सक्रियता भविष्य में बडे संकट का संकेत दे रही है। क्योंकि वह धर्म को अर्थ के मार्ग पर ले जा रहे हैं और गरीबी सदैव इस पर चलने को मजबूर रहती है। इसी मजबूरी का फायदा उठाने से आधा दर्जन से भी अधिक बस्तियों में हे राम की जगह हे गाड गुजने लगा है। वह भी ऐसे लोगों के मुख से जो इतने भी नहीं पढे लिखे हैं कि दोनों धर्मों की तुलना कर सकें। रामचरित मानस ने उनकी पीढियों को हे राम का पाठ पढाया था अब पादरी उन्हें वो गाड रटाने में लगे हैं। इसपर इसलिए भी विचार करने की खास जरूरत है कि हाल ही में धर्म के नाम पर पैर पूजवाने वाले कुछ बाबाओं का एकांत चेक हुआ तो दुखद बात सामने आई। कहीं इनके भी अभियान के अंजाम का एकांत डरावना नहीं मिले इसके पहले ही धर्म पर की जा रही अर्थ की इस चोट को रोकना होगा। क्योंकि यह सब एक अभियान के तहत पूरे देश में हो रहा है।
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