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पिछले दो दिनों से जब सुबह अखबार पढ रहा हूं और शाम को जागरण जंक्शन पर जा रहा हूं तो भाई लोगों को बहन जी पर ही बरसते पा रहा हूं। टीवी पर तो सपा, कांग्रेस व भाजपा ने उनके खिलाफ एक अभियान ही चला रखा है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है ये लोग इतना परेशान क्यों है। माला पहनना कोई गुनाह तो नहीं है। खैर विरोधी तो हमेशा विरोध ही करेंगें। पहले मूर्तियों के नाम पर हाय तौबा से सुर्खियो में रहे और अब माला पर हल्ला मचा रहे है। उन्हें भले ही बहन जी का माला अच्छा नहीं लगा हो, लेकिन मुझे तो बहन जी का यह नया कदम खूब भाया। मुझे क्यों रैली में गये लाखों दलितों की नजरों में भी खूब समाया। विरोधी क्या इसका जवाब दे सकते हैं कि, इसके पहले एक साथ एक करोड रुपये दलितों को किसी ने दिखाया है। किसी ने नहीं। वे तो महज भाषण में कहा करते रहे कि दलित उत्थान के लिए सरकार करोडों रुपये की व्यवस्था की है। एक साथ एक करोड दिखाने का किसी ने प्रयास नहीं किया। यह श्रेय बहन जी को जाता है। पहली बार उन्होंने लाखों दलितों को एक साथ हजार हजार की नोट की शक्ल में एक करोड दिखाया। अब दलित सीना फूला कर कह सकते हैं कि हमने एक साथ ही एक करोड रुपया देखा है। इनसे पूछिये कभी हजार की नोट भी मुश्किल से देखने वाले ये लोग करोड रुपये एक साथ देख कर कितना खुश हैं। अब दलित बस्ती में कोई यह नहीं कह सकता है कि एक साथ लाख रुपये या करोड रुपये देखे हो क्या। एक और बात, हजारों रूपये का ही सही फूलों की माला पहन कर कुछ देर बाद उसे फेंक देने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि बहन जी शायद ही कभी इस माले को अपने से दूर करेंगी। क्या उनकी तरह विरोधी दल के लोग लम्बे समय तक अपनी माला की चिंता करते है। नहीं, यह चिंता पहली बार केवल बहन जी ने किया है। रुपये की खातिर ही सही वह अपने समर्थकों के इस प्यार को लम्बे समय तक अपने पास रखेंगी। समर्थक प्यार को इनता करीब रखने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम होगा। विरोधी दल क्या जाने पर बहन जी को तो यह भी मालूम था कि अगले दिन से ही नवरात्रि है। देवी को चढाने के लिए ढेर सारे फूलों क जरूरत पडेगी। ऐसे में उन्होंने फूलों की माला न पहन कर मंदिरों के लिए फूल भी तो बचाया। अब मालियों को यह बात बुरी लगे और फूल के कारोबारी इसे अपने करोबार में आए गिरावट का कारण बता बहन जी को दोषी ठहराये तो यह अन्याय ही है। दलित बस्ती में रहेने वाले आज तक कवेल करोडो की योजना, करोडो की लागत, करोडो का खर्च मात्र ही सुन कर संतोष करते रहे हैं कभी एक साथ एक करोड ईंटा और ढेला भी नहीं देखे, लेकिन भला हो बहन जी का उन्होंने उनको एक साथ करोड रुपये दिखा धन्य कर दिया। यह भी बता दिया कि यह आप जैसे लोगों ने ही अपने प्यार के रूप में दिया है। यह और बात है कि यह सुनने वाले कुछ विरोधी अपना जेब टटोले और दूसरों की ओर मुंह कर मौन शब्दों में सही यह पूछने लगे किसने दिया है। उन्हें कौन बताए कि दिया किसी ने भी हो लेकिन है तो बहन जी के पास यानी दलित की बेटी की बेटी के घर ही न । किसी मनुवादी के पास थोडे एक करोड रुपये का हार है जो दलितों को चिंतित होने की जरूरत है। माला ही क्यों मूर्तियों पर विरोध जताने वाले से भी हमारा विरोध है। आजादी के बाद से आज तक दलित बस्तियों के विकास का दावा किया जा रहा है, लेकिन न तो बस्तियों का विकास हुआ और न ही दलितों को पानी, सडक और मुकम्मल बिजली की रौशनी ही मिली। बहन जी ने कम से कम इतना तो व्यवस्था कर ही दिया है कि दलित बस्तियों में न सही प्रदेश की राजधानी में ही सही दलित अपने महापुरूषों की विशाल मूर्तियों के चारों ओर बने पार्क में पानी, सडक और रौशनी ही नहीं बल्कि फब्बारों तक का दर्शन कर सकंगे, वरना आज तक तो किसी ने उनके सपनों में भी ऐसा कुछ भेजने का प्रयास नहीं किया। हां, यह सवाल विरोधी उठा सकते हैं कि वहां तक पहुंचने के लिए दिलितों के पास किराया तक नहीं है तो मेरा कहना है कि सब बहन जी के कार्यकाल में थोडे ही होगा, कुछ आने वाली सरकारों के लिए भी तो शेष रहना चाहिए। वरना वे इस बात को मुद़दा बना देंगे कि बहन जी ने तो दलितों के लिए करने को उनके लिए कुछ छोडा ही नहीं। ऐसे में बहन जी के लिए मैं लम्बी दुआ करना चाहता हूं कि आप जियो हजारों साल। करोड रुपये का विकास दलित बस्तियां देखे या न देखे हर साल करोड रुपया तो एक साथ देंखेगे ही, जैसा कि बहन जी के एक खास भाई ने कहा कि बहन जी चाहे तो हर बार इसी तरह का हार पेश होगा।
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