- 49 Posts
- 512 Comments
घर का मुखिया सहनशील होना चाहिए। यह मैं बचपन से सुनता आ रहा हूं। पर, इस पर चिदंबरम साहब तो सौ फीसदी खरे उतर रहे हैं। ऐसे में मैं सलाम करता हूं उनकी सहनशक्ति को। आप को बुरा लगे तो लगे पर मुझे तो व खूब सहनशील लगे। दंतवाडा काण्ड के पहले भी और बाद में भी। जब ग्रिन हंट शुरू हुआ तब भी वह नक्सलियो के प्रति उतना ही सहज थे जितना की अब हैं। असल में वह सांप तो मारने की बात करते हैं पर लाठी के बारे में भी खूब सोचते हैं। यह उनकी अकलमंदी का प्रमाण है। गुरुवार व शुक्रवार को अखबारों में छपे उनके बयान ने मुझे खूब प्रभावित किया। उन्होंने बताया, नक्सलियों को हथियार सीमा पार से मिल रहा है। वे वहां जा कर खरीद रहे है। स्थान का नाम भी उन्होंने बताया। नेपाल के साथ एक दो और देशों को सूची में शामिल किया। उनका यह रहस्योदघाटन यही नहीं रूका, उन्होंने यह भी बताया कि नक्सलियों को धन कहां से मिल रहा है। बोले वह बैंक लूटते हैं। अपने क्षेत्र के खनन से जुडे लोगों से भी धन उगाही करते हैं। उनकी इस जानकारी से मैं बहुत प्रसन्न हुआ। आखिर नक्सलियों के बारे में इतना ज्ञान किसके पास है। यह और बात है कि कुछ लोग इस बात को लेकर ही नाराज हैं कि उन्होंने यह नहीं बताया कि नक्सलियों से निपटने के लिए वह आगे क्या कर रहे हैं। ऐसे लोगों से मेरा यही कहना है कि वह कर तो रहे हैं आप देख नहीं रहे हैं तो इसमें उनका क्या दोष है। वह बार बार यह बता रहे हैं कि कहीं चूक हुई जिससे छिहत्तर जवान शहीद हो गये। चूक कहां हुई इसकी जांच भी कराने जा रहे हैं। अब आप यह मत पुछिएगा कि जांच से क्या नक्सलियों का उत्पात रूक जाएगा। अरे भाई उत्पात रूके न रूके चिदंबरम साहब इतना तो कह रहे हैं कि जांच की अवधि तय होगी। यानी रिपोर्ट जल्दी आएगी। अब यह और है कि तब क्या होगा। तो सुनिए जब होगा तब होगा। अभी तो उन्होंने घटना की जिम्मेदारी भी अपने सिर पर ले ली है। इतनी बडी बहादुरी मैने पहले किसी के भीतर नही देखी है। बहादुर जवान शहीद हुए है तो इसमें उनका क्या। जवान तो शहीद होने के लिए सेना में भर्ती होते हैं। शहादत की इबारत उनसे जुडती है तो वह अमर हो जाते हैं। चिदंबरम साहब नरम नहीं होते तो हमारे छिहत्तर जवान अमर कैसे होते। इसमें भी यूपी का सिर सबसे ऊचा हुआ है। यहां के हिस्से में बयालिस शहादत आई है। यहां आसुओं का समंदर बहा है। किसी ने अपना बेटा खो दिया है तो किसी मां की कोख सूनी हो गयी है। किसी के सिर से बाप का साया उठ गया है तो किसी की मांग का सिदुर पुछ गया है। इससे चिदंबरम साहब भी परचित हैं। यह और बात है कि वह दिल्ली में हैं और गम गांव में मानवता को रूला रहा है। गांव वह नही आए तो उन्हें क्या मालूम कि जो जवान शहीद हो गये हैं उनके घर का हाल कितना बेहाल है। उन्हें तो नक्सल क्षेत्र के आम लोगों की चिंता सता रही है। क्योंकि इनकी सुरक्षा के लिए बडे बडे लेखक आए दिन अपनी लेखनी चलाते रहेते है। इन लेखकों का भी कया दोष। इनमें से भी तो अधिकतर दिल्ली जैसे शहर के ही हैं। कभी बाहर निकलते भी है तो इन्हें यू पी के बजाय नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ही जाना पडता है, क्योंकि पुरस्कार लायक खबर तो यही रहती है। नौजवानों के गांवों में इन्हें क्या मिलने वाला है। ऐसे में चिदंबरम साहब भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के ही आम आदमी की चिंता ज्यादा करते हैं तो इसमें उनका क्या दोष है आखिर जवाबदेही भी तो इसी क्षेत्र के प्रति अधिक होती है। उन्होंने साहनशक्ति का परिचय दिया, चूक स्वीकारी, गलती मानी, जिम्मेदारी ली और अब उनसे लोगों को क्या चाहिए। वायु सेना के उपयोग पर भी वह विचार कर ही रहे हैं। वैसे भी उनका पद लडने के लिए थोडे है जो वह बंदूक उठा कर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों पर धावा बोल दें। उनका काम ही विचार करना है और वह अपना काम बखूबी कर रहे हैं। वह भी सहनशीलता के साथ। यही तो साहब की खूबी है वरना अब तक तो विपक्षी उनसे त्याग पत्र तक मांग लिए होते। उनकी कुर्सी बरकरार है सहने की क्षमता लाजवाब है। मेरा एक बार और उन्हें सलाम है।
Read Comments