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चिदंबरम साहब की चुप्‍पी पर कुर्बान

सच
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भाई आप सब चिदंबरम साहब को चाहे जैसे लो मै तो उनकी चुप्‍पी पर कुर्बान हूं। मैं चाहता हूं की देश के प्रधानमंत्री जी उनकों चुप्‍प रहने का कोई बडा पुरस्‍कार दें। वे इसके पक्‍के हकदार हैं। वरना नेता लोग या सत्‍ता व विपक्ष के ओहदेदार कहा चुप्‍प रहते हैं। आप ने देखा होगा संसद में स्‍पीकर चुप रहने को कहती हैं और लोग नहीं मानते हैं। वह शांत कराती हैं तो उनके आसन तक चले जाते हैं। अंत में उनको मिनट व घण्‍टों या दिनों तक के लिए लोक सभा ही स्‍थगित कर देनी पडती है। ऐसे में चिदम्‍बर साहब मीशाल बनते चा रहे हैं चुप्‍पी की। उनकी चुप्‍पी में बडकपन भी है और इमानादी भी। सालीनता भी है और मानवता भी। बडकपन इसलिए कि वह बडे बडे सवालों पर भी चुप्‍प हैं। इमानदारी इसलिए की न वह बोलते हैं और न ही किसी को तकलीफ होती है। चाहे वह नक्‍सली ही क्‍यों न हो। उनकी चुप्‍पी में सालीनता तो इस कदर है कि लगता है वह होम मंत्री नहीं शान्ति मंत्री हैं। मानवता का क्‍या कहना। उनकी चुप्‍पी मारने वालों को भी अब मरने से बचाने लगी है। चुप्‍पी के प्रति उनकी भिष्‍म प्रतिज्ञा देखिए, बस में धमाका हो, रेल की पटरियों पर धमाका हो या धमाका दर धमाका हो वे मौन व्रत नहीं तोडते हैं। तोडते भी हैं तो धमाके की शक्‍ल सूरत पर। उनकी इस अदा पर केवल मैं ही नहीं राहुल और सोनिया भी पिफदा लगते हैं। प्रधानमंत्री जी तो पहले ही उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। थपथपाएं भी क्‍यों नहीं उनकी चुप्‍पी इनती मजबूत है कि देश के सबसे बडी माओवादी वारदाता पर भी नहीं टूटती है। बोलती भी है तो मानवधिकार की इज्‍जत करते हुए। ज्ञानेश्‍वरी एक्‍सप्रेस पर हमला में मरे एक सौ पचास लोगों की चीख भी उनकी चुप्‍पी को नहीं तोड पाई तो आप सब की क्‍या औकात है। अब आप कहेंगे जो मर रहे उनका क्‍या। तो सुनिए जो मर रहे हैं उन्‍हें चिदंबमरम साहब थोडे ही मार रहे हैं। उन्‍हें नक्‍सली माओवादी मार रहे हैं। चिदंम्‍बरम साहब रेल यात्रियों व सैनिकों को नहीं बचा पा रहे है तो क्‍या नक्‍सलियों को तो बचाते ही आ रहे हैं न । कोई तो बच रहा है। उनकी नजर में सब एक समान हैं। सबके प्रति वह मौन हैं। मरने वालों के प्रति भी और मारने वालों के प्रति भी। वैसे भी मरने वालों में उनका कोई सगा सम्‍बंधी तो हैं नहीं। पार्टी का या सरकार का नक्‍सली कुछ बिगाड तो रहे नहीं। तो पिफर अपनी चुप्‍पी वह क्‍यों तोडे। वह देख नहीं रहे हैं के हाल ही में थरूर और जयराम रमेश को बोलने के लिए कितना भोगना पडा। पिफर चिदंबरम साहब भी यह गलती क्‍यों करें। आप सब को कष्‍ट हो रहा है आप सब बोलिए। उनका कुछ नहीं बिगड रहा वे क्‍यों बोलें। बोलेंगे तो न बोलने की उनकी प्रतिज्ञा टूट जाएगी। उनकी यह प्रतिज्ञा शुक्रवार को एक सौ पचास के मौत पर नहीं टूटी तो आप सब के लिखने और बोलने से थोडे ही टूटेगी। वे जानते हैं बोलें तो नक्सिलियों के खिलाफ बोलना पडेगा। बोलने का मतलब बंदूक का जवाब बंदूक से देना पडेगा। ऐसा तो वे करने वाले नहीं, मरने वाले मरें तो मरें। दोष उनका थोडे ही है। न रेल होती, न पटरी उडाई जाती और न लोग थोक के भाव में मरते। न पुलिस गलती करती न वह मारी जाती। ओर वह तो यह भी नहीं कह रहे है कि नक्‍सली गलती कर रहे हैं। वह तो स्‍पष्‍ट न बोलने की कसम खाने के बाद भी संकेतों में कह चुके हैं कि रेल की घटना रेल पुलिस की निष्क्रियता से हुई न की माओवादियों की सक्रियता से। हां, यह भी मत भुलिए कि वह अर्थशास्‍त्री हैं देश के वित्‍त मंत्री रह चुके हैं। वह पहले घटना, मौतों और नक्‍सलियों के आंकडो की समीक्षा करेंगे और तब जरूरी पडा तो चुप्‍पी तोडेगे। हो सकता है आप के हिसाब से नक्‍सलियों ने हद को पार दी हो, लेकिन एक अर्थशास्‍त्री होने के नाते हो सकता है उनके लिए अब तक के आंकडे पूरे नहीं पड रहे हों। जब मौतों के आंकडे पूरे पडेगे तब चिदंबरम साहब चुप्‍पी तोडेगे। तब तक आप सब कलम घिसिए, क्‍म्‍प्‍यूटर बजाइए, जो जी मे आए वो बडबडाइए, उनकी बला से। मैं तो उनकी चुप्‍पी पर कुर्बान हूं। मैं ही क्‍यों आए दिन लोग नक्‍सलियों के माध्‍यम से बडी से बडी संख्‍या में कुर्बान हो रहे हैं, लेकिन क्‍या नक्‍सलियों के प्रति चुप्‍प रहने की उनकी चुप्‍पी को कई तोड पाता दिख रहा है। नहीं, तो आप भी नही तोड पाएंग। अबर तोडने में कामयाब भी रहे तो वह इतना ही कहंगे बंदुक और बम चलाने वालों से की वे बातचीत करें।

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