- 49 Posts
- 512 Comments
मित्रों काफी दिनों के बाद इस मंच पर आया हूं। सोच रहा था कहा से शुरूआत करू तो अपनी एक रिपोर्टिंग यात्रा का एक पडाव उचित लगा। यह था उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के औचक निरीक्षण के शुभारम्भ का। पहुंचा था खबर की भूख लिए, लेकिन नजर आई एक और पिपली लाइव। असल में मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के औचक निरीक्षण का लक्ष्य रहा पिपरा खादर गांव मंगलवार को पिपली लाइव जैसी पीडा से पीडित नजर आया पहले अफसरों की धौस से सहमा। बार में प्रचार माध्यमों की धमा चौकडी से गुजरा। आस जगी की अंत में सीएम के आते ही बहुत कुछ हो जाएगा, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। हां हेलीकाप्टर उतारने के लिए जहां पहले ही एक खेत हेलीपैड के नाम खेता हो चुका था वहीं हेलीकाप्टर के उतरते ही भीड के भगदड में दबकर नत्था जैसे कइयों की फसल चौपट हो गयी। रह गयी तो सीमए के पन्द्रह मिनट के निरीक्षण के बाद उनके विमान के पंखे से उठी धूल, जिसमें धूमिल हो गयी एक एक कर दुर्व्यवस्था के खिलाफ बडी कार्यवाही की उम्मीद।
पिपली लाइव में नत्था के मरने की खबर से कम पिपरा खादर गांव में सीएम के निरीक्षण की खबर नहीं थी। उसमें लोग उसके मरने की उम्मीद कर रहे थे और इसमें लोग गांव की दुर्व्यवस्था के मरने की खबर को तय मान रहे थे। माना जा रहा था कि गांव के विकास में अवरोध बना हर सख्स बुधवार को सीएम के आते ही निलम्बित हो जायेगा। इसके बाद इमानदार लोग आयेंगे और अधूरे इंदिरा आवास, टूटी सडक व ऐसे ही विकास के अलग अलग हो चुके हर तार दुरूस्त हो जायेंगे। हां सीएम के आने की खबर के तीन दिन पहले से ही गांव में पिपली लाइव जैसा महौल जरूर बन गया था। कमी को दूर करने के लिए प्रशासन की पूरी फौज लगी तो तेजी के प्रचारक भी अस्थाई और स्थाई रूप में गांव को निशाने पर ले लिए। अचानक बाहरी भीड की आमद से गांव का महौल गर्म हो गया। आनन फानन में किसी इंदिरा आवास की छत डाली गयी तो किसी जर्जर सडक को कलेवर दिया गया। पेंशन के धन व छात्रवृति के पैसे भी यथासम्भव बांटे गये, पर तीन साल के बीसरे काम तीन दिन में निपटने को तैयार नहीं थे। मंगलवार का दिन अंतिम दिन था सो सोमवार की रात तक सब ठीक करने के प्रयास मे बहुत कुछ बेठीक रह गया। मसलन प्रथमिक स्कूल की बाउण्डी इस कदर बनी कि मंगलवार को सीमए को देखने उमडी भीड के लिए उस पर हाथ तक रखने की मनाही थी। गेट बंद होने को तैयार नहीं था। प्रयास हुआ तो कच्ची जोडाई के काराण वह लुढक गया। छात्र संख्या के लिए अन्य स्कूलों के छात्र बुलाये गये। शिक्षकों का नियतन भी उधार के भरोसे पूरा हुआ। हद तो तब हो गयी जब हेलीपैड बनाने के लिए काशिम के दो मण्डे गेहूं की फसल कुर्बान कर दी गयी। गांव के हर सख्स पर मौन व्रत के लिए पुलिस का पहरा बैठा दिया गया था। तब लोग उम्मीद के भरोसे सडक के किनारे पुलिस के ताने रस्से के बगल में बैठे सीएम का इंतजार कर रहे थे। कोई ज्ञापन देने को था तो कोई मन की पीडा हल्का करने की सोच रहा था। कुछ को पेंशन न मिलने की शिकायत थी, कुछ को पुलिस की कारस्तानी बतानी थी। खैर इनकी उम्मीद का सूरत अचानक आकाश में हेलीकाप्टर के साथ्ा चमका तो सबके चहेरे चमक गये। पर, इनमें से दर्जनों चेहरे तब मुरझा गये जब हेलीकाप्टर देखने की होड में उमडी भीड दर्जनों खेतों की फसल को रौंद उनकी गाढी कमाई मिटटी में मिला गयी। खेतों की रखवाली में किसान बचाओ बचाओ की रट लगाते रहे और भीड उनके गेहूं को गुड की तरह मथती चली गयी। इसका दर्द भी वह सीएम से आप बीती बता कम कर लेते पर पीडा तब पहाड हो गयी जब सीमए गांव में गयीं और महज पांच मिनट में उनकी पीडा सुने बगैर डीएम को यह कहते हुए उड गयीं कि आल इज वेल। रह गये तो नत्था जैसे कई किरदार जो समझ नहीं पाये कि तीन दिन तक विकास की दुहाई देने वाला प्रशासन महज पन्द्रह मिनट में क्यो और कहां चला गया। क्यों मडराया हेलीकाप्टर। क्यों आयीं सीएम। क्यों अधूरा रह गया गांव का विकास और क्यों रौंद दी गयी उनकी गाढी कमाई:
Read Comments