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मैं हूं आजादी की नीव का पहला पत्थर!

सच
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मित्रों काफी दिनों बाद इस मंच पर दुबारा आने का मन हुआ। सोचा कहां से शुरू करू। पहले जेहन में अन्‍ना और उनसे बनी परिस्थितियां आईं। पर, इसे तो बहुतों ने बया कर दिया है। ऐसे में गुजरे दिनों की एक यात्रा विषय दे गई। बात स्‍वतंत्रता से जुडी है। पौली ब्‍लाक में एक पथ्‍तर मिला। इसे आजादी के पचीस वर्ष पूरे होने पर लगाया गया था। इसके एक तरफ भारत के संविधान की प्रस्‍तावना लिखी है तो दूसरी तरफ स्‍थानीय स्‍वतंत्रता सेनानियों के नाम। यह देश में भर एक साथ शिलालेख लगाने के पत्‍थरों में से एक है। आप के यहां सुरक्षित है या नहीं, जरूर बताइएगा। यह कुछ यूं बोलता हुआ दिखा……।
गुलामी की बेड़ी काटने का जश्न फिर मनाया गया। आजादी का प्रतीक मेरा प्यारा तिरंगा फिर लहराया। समारोहों में गिनाए गए आजादी के साल। बताए गए कितने वर्ष पहले थे हम सब गुलाम। कब हुए आजाद। पर, मुझे नहीं किया कोई याद। वह भी तब जबकि, मैं आजादी के नीव का वह पहला पत्थर हूं, जिसको सम्राट अशोक के स्थापित शिलालेखो के बाद शायद सर्वाधिक सम्मान मिला। मेरे भाई देश के हर ब्लाक में हैं। बताते हैं, क्या है देश के संविधान की मूल भावना। याद दिलाते हैं, ये हैं वे वीर सपूत, जिन्होंने इस इलाके से भगाए अंग्रेजी भूत। पर, बदहाल है हमारा वर्तमान। हम आप के पास रहते हुए भी हैं काफी दूर। काश! अबकी हमारे भी थोड़े नजदीक आए होते आप।
हमारे भाइयों का वजूद आप को जिले के हर ब्लाक में भले ही न दिखे। पर, मैं गोरखपुर के पौली ब्लाक में कुछ हद तक ही सही महफूज हूं। यहां डोहरिया कला स्मारक स्थल के एक कोने में ताकता रहता हूं आप की राह। कोने से ताकने की हमारी यह इंतजारी काफी पुरानी है। बात आजादी के 25 साल पूरे होने पर शुरू हुई। तब न तो संचार माध्यम इतने थे और न ही जानने व बताने की पिपासा। ऐसे में वर्ष 1972-73 में हम केंद्र सरकार की कोख से पैदा हुए। मकसद था, आजादी के वीरों के पूज्य नाम को उनके क्षेत्रों में अमिट बनाना। भारत के संविधान से सभी को हर दिन परिचित कराना। फिर तय हो गया हमारा स्वरूप। हमारी पीठ पर खुदवाई गई भारतीय संविधान की प्रस्तावना। छाती पर लिखी गई क्षेत्र के वीर सपूतों के नाम की सुनहरी इबारत। मेरे हिस्से गोरखपुर जनपद का पौली ब्लाक आया। भाइयों के हिस्से देश के अन्य इलाके। मैं शहीद स्मारक में ही स्थापित हो गया। अन्य चले गए अपने -अपने धाम। उनकी क्या दशा है, मुझे मालूम नहीं। वे आप के ही आसपास होंगे। आप के ब्लाक में। हो सके तो अगले स्वतंत्रता दिवस पर आप उनसे भी मिलना। वे बताएंगे आप के पूर्वजों के नाम, समझाएंगे क्या है हमारे संविधान का मूल। क्योंकि अब हमें कोई नहीं पूछता। मुझे ही देखिए, पौली में आम पत्थरों की तरह पड़ा हूं। सुरक्षा घेरा पूरी तरह टूट गया है। मुझे फूल भेंट करना तो दूर कोई एक नजर देखता भी नहीं। यह बताने के बावजूद कि मैं हूं स्वतंत्र भारत की नीव का पहला पत्थर। बगैर गजेटियर व किताब के बता सकता हूं क्षेत्रीय स्वतंत्रा सेनानियों का नाम और क्यों हैं अपने संविधान का इतना सम्मान…।

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