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और वो नहीं आई

सच
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मित्रों काफी दिनों बाद इस मंच पर एक बार और आ पहुंचा हूं। असल में मैं इन दिनों पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के मुरादाबाद में हूं। ऐसे में समय कम मिला। लेकिन आज मन नहीं माना तो इस छोटी सी बात को लेकर आप सब के बीच में आ पहुंचा। शहर की समस्‍या के साथ अपना वक्‍त एक दिन कुछ ऐसे गुजरा।

स्‍नान के समय आज वह मुझे बहुत याद आई, लेकिन वह नहीं आई। पहले वह रात के नौ बजे ही सही आ धमकती थी। उसकी धमक से ही पता चल जाता था कि घडी की सुई नौ का वरण कर चुकी है। सुबह का उसका जाना बताता था कि घडी की सुई अब पांच की हो गई है। इसके बाद दिन में ग्‍यारह बजे आती थी तो उसे देख दोपहर बाद चार बजे तक मशीनी धंधे अपनी लय में होते थे। उसका यह रूटीन महीनों से चला आ रहा था, लेकिन गुरुवार की शाम को न तो वह समय से आई और न ही शुक्रवार को दिन भर रही। मैं रोज की तरह आज भी उसका इंतजार करता रहा और वह नहीं आई।
गुरुवार को वह अपने तय समय दोपहर बाद चार बजे गयी तो मुझे रोज की तरह उसके नौ बजे आने का इंतजार था। दफ़तर से हारा थका घर पहुंचा तो टी वी का रिमोट हाथ में लिये उसके साथ रोजाना की तरह खाना खाने का इंतजार करता रहा पर वह नहीं आई। एसे में काफी दिनों बाद उसके बिना जहां टी वी डब्‍बा सरीखे लगा वहीं मोम्बत्‍ती की रोशनी में ही रात का निवाला निगलना पडा। रात में पता नहीं कब उम्‍मीद के उलट अपनी आमद दर्ज कराई तो लगा कि घण्‍टो की रूसवाई की भरपाई कर विदा होगी। यह उम्‍मीद रोज से अलग भोर पांच बजे से सवा दस बजे तक रही, लेकिन खत्‍म हो गयी। पर, उम्‍मीद तो उम्‍मदी है। लगा कि अपने तय समय ग्‍यारह बजे तक आ जाएगी और दोपहर बाद चार बजे तक दफ़तर व दुकान को गति देने में साथ देगी, लेकिन एक बार ि‍फर शुक्रवर को सुबह ग्‍यारह बजे से दोपहर बाद चार बजे तक वह अपनी उपस्थिति के समय में नहीं रही। उसके अपने तय समय पर हाजिर न रहने से जहां गुरुवार की रात में दुश्‍वारिया झेलनी पडी वहीं शुक्रवार को भी दिन में मुश्किलों का सामना करना पडा। दफतर में इन्‍वर्टर सुबह ही जवाब दे गया तो जनरेटर शाम होते होते हाफने लगा। मेरे साथ इलेक्‍टानिक की दुकानों व संस्‍थानों को भी मुश्किलों का सामना करना पडा। दुकानों व शैक्षणिक संस्‍थानों में कमाई व पढाई बाधित रही। ग्राहकों को दुकानदार उसके आने का हवाला दे कर लैटाते रहे और ग्राहक उसके आने के इंतजार में बैठे रहे। ऐसे में दफतर, दुकान और बाजार जो काफी हद तक उसके रहने पर ही अपनी क्षमता बघारते है दिन भर आलस्‍य के गुलाम रहे। उसकी वफा में आई कमी के बारे में जब उसको भेजने वाले साहबो से पूछा गया तो उन्‍होंने मात्र इतना ही कहा कि आजकल कम मिल रही है। जब मिल रही है तब आप के पास भेजी जा रही है। इसपर मैने एक सवाल दागा कि जब प्रदेश के या देश के बडे नेता यहां आते है तो आप को कैसे मिल जाती है तो उनका जवाब था कि बडो के साथ समय बिताना किसे अच्‍छा नहीं लगता। आप भी बडे बन जाइये। जहां जाइगा वहां आप के साथ रहेगी। खैर वह कोई और नहीं बिजली है जिसके बिना अब रात गुजारनी मुश्किल सी हो गयी है। क्‍या आप सभी को मिल रही है। मरे लिए तो वह बेवफा हो गयी है।

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