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खाई की ओर बढती कांग्रेस को बधाई

सच
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यह मैं नहीं दे रहा। खुदमुख्‍तार दे रहे। मुलायम, मायावती, नीतीश। प्रणब दा के बहाने। खुदमुख्‍तार इसलिए कि ये अपनी पार्टी के सर्व मान्‍य नेता हैं। जो इन्‍हें यह मान्‍यता नहीं देता वह पार्टी के बाहर जाता। ऐसे में इनकी बधाई गठी हुई है। ऐसा नहीं होता तो इनकी पार्टी से भी देश के सर्वाच्‍च पद के लिए कई बोल निकलते। ये तीनों पीएम बनना चाहते हैं। इनके रहते इनकी पार्टी का कोई और यह सपना नहीं देख सकता। मनाही है। मुलायम व मायावती की यूपी में तो पार्टी मंच से दोनों को पीएम बनाने का संकल्‍प लिया व दिया जाता है। ये संकल्‍प इनके बूते पूरे नहीं हो सकते। यह बात खुदमुख्‍तारों को भी मालूम है और उनकी पार्टी को भी। भाजपा इन्‍हें अपने साथ रहते हुए इसकी इजाजत नहीं देती। कांग्रेस को छोड अन्‍य दलों में यह बूता नहीं है। कांग्रेस का एक पूराना कदम इन्‍हें ललचाता है। वह राजीव गांधी के समय में चंद्रशेखर के पीएम बनने वाला मामला है। तब 28 सांसद ही जुटा पाए थे चंद्रशेखर, लेकिन राजीव गांधी ने उन्‍हें पीएम बना दिया। कुछ ऐसी ही नेमत की उम्‍मीद लगाए बैठे हैं ये खुदमुख्‍तार। सो, लोकसभा चुनाव में अपने-अपने राज्‍यों में कांग्रेस से दो-दो हाथ की तैयारी करते हुए भी उसके प्रत्‍याशी प्रणब दा को समर्थन दे कांग्रेस को बधाई दे रहे हैं। असल में वे कांग्रेस की मजबूती को बधाई नहीं दे रहे, बल्कि सियासी खाई की ओर बढते उसके कदम को बधाई दे रहे हैं। बधाई देने वाले जानते हैं, राष्‍टपति के पद पर प्रणब बैठें या कोई और, उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पडने वाला, लेकिन कांग्रेस की तबियत जरूर नासाज होने वाली है। उसके युवराज राहुल की राह आसान नहीं रहने वाली है।
जरा सोचिए, भारतीय लोकतंत्र में राष्‍टपति का क्‍या महत्‍व है। परंपरा का निर्वाह करने वाला बुजुर्ग जैसा लगता है। इस पद पर किसी को बैठाने का मतलब सियासत से विदाई। प्रणब दा इतने कमजोर भी नहीं हुए कि उन्‍हें विदा कर दिया जाए। वह तो इस दौर में भी कांग्रेस के संकटमोचक थे। देश के वित्‍त मंत्री थे। नेता सदन थे। कई खास समितियों के अध्‍यक्ष थे। उनके जैसे कुशल व्‍यक्ति के रहते हुए कांग्रेस सियासी समस्‍याओं से जूझती रही है और जूझ रही है। अर्थव्‍यवस्‍था के मुद़दे पर चौतरफा आलोचना का शिकार हो रही है। महंगाई उसे खाने के लिए मुंह बाए हुए है। रेटिंग लगातार गिर रही है। सदन में और सदन के बाहर आए दिन अपने नेताओं के बयान से खुद घिरती रही है। हर नेता के बयान को उसकी निजी राय बता संभलने का प्रयास करती रही है। ऐस में प्रणब दा की जरूरत सक्रिय राजनीतिक के बजाय देश के एक रबर स्‍टैंप कहे जाने वाले पद पर क्‍यों। प्रणब कांग्रेस को अल्‍पतम के बावजूद अगली सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के अलावा कांग्रेस की अब क्‍या मदद कर पाएंगे। अब तो वह सियासत भरे टिप्‍स भी नहीं दे पाएंगे। उनके जैसा टिप्‍स कोई और दे पाएगा इसकी उम्‍मीद अभी दूर-दूर तक नहीं दिख रही है। ऐसे में यह तय है कि आने वाले दिनों में राष्‍टपति पद के लिए चली गई कांग्रेस की यह चाल उसे आथर्कि-राजनीतिक रूप से मुश्किलों में डालेगी। इसी मुश्किल को मजबूत करने के लिए खुदमुख्‍तार कांग्रेस को बधाई दे रहे हैं। उन्‍हें मालूम हैं कि अगर राहुल गांधी कमान नहीं संभालते तो मनोमोहन को विदा करने के अवसर खोज रही कांग्रेस को प्रणब दा प्रधानमंत्री पद के लिए विकल्‍प रूप में मिल जाते। अब यह विकल्‍प भी जाता रहा है। ऐसे में ये खुदमुख्‍तार कांग्रेस के साथ मिल कर दलित और पिछडे पीएम के नाम पर कांग्रेस गठबंधन में अपनी दावेदारी की चाल चल सकते हैं। क्‍योंकि इनके राज्‍यों में कांग्रेस कुछ भी तो हासिल नहीं करती दिख रही है। बिहार में वह दो कौडी की है और यूपी में मुलायम और मायावती उसे गठबंधन धर्म के नाम पर भी चंद सीट नहीं देने वाले। अपने तई वह क्‍या कर लेगी, यह उसे अच्‍छी तरह मालूम है।
असल में कांग्रेस की एक नीति उसे कुएं से खाई की ओर ले जा रही है। वह राष्‍टपति चुनाव की सफलता पर खूब इठला सकती है। उसे इठलाने का हक भी है। आखिर उसने ममता के घमंड को चूर जो किया है। एनडीए के साथी जदयू को अपने साथ आने के लिए मजबूर जो किया है। मुलायम व मायावती जैसे धूर विरोधी को एक सथ अपने मंच पर मौजूद जो किया। पर, उसके इठलाने के साथ उसके विरोधी मुस्‍कुरा रहे हैं। कारण कांग्रेस की गड़ढा खोद कर गड़ढा भरने की आदत जो बनी हुई है। इस आदत के लिए भी उसे कभी मुलायम सिंह यादव ने ही मजबूर किया था। तब मुलामय के विरोध से सोनिया पीएम बनते-बनते रह गई थीं। पीएम पद को भरने के लिए कांग्रेस ने अर्थशास्‍त्री मनमोहन सिंह को ला कर अपने लिए अर्थ क्षेत्र में गडढा खोद दिया। नतीजा कांग्रेस का अर्थ शास्‍त्र गडबडाया तो पी चिदंबरम को हटा कर प्रणब दा को वित्‍त मंत्री बनाया। तब से अब तक कांग्रेस की आर्थिक गाडी पटरी पर नहीं आई। प्रणब इसे लाने का प्रयास कर ही रहे थे कि कांग्रेस ने अपनी आदत के अनुसार राष्‍टपति पद को भरने के लिए उन्‍हें उम्‍मीदवार बना एक बार और पार्टी के सियासी और आर्थिक क्षेत्र में गड़डे खोद दिए। इतना ही नहीं ममता के हठ से असहज हो चुकी कांग्रेस ने उनसे मुक्ति पाने के लिए उन्‍हें नाराज कर एक और गड़ढा खोदा तो उसे भरने के लिए मुलायम को साथ ले अपने लिए खाई ही खोद डाली। अब कांग्रेस इस खाई की ओर बढ रही है। उसे पता होना चाहिए कि मुलामय और मायावती जैसे नेताओं की महत्‍वाकांक्षा कांग्रेस की महत्‍वाकांक्षा से टकराती रही है। दोनो पीएम बनना चाहते हैं और दोनो ही देश के सबसे बडे प्रदेश यूपी में सियासत करते हैं। मायावती का बेस जहां दलित वोट है वहीं मुलायम मुसलमानों के भरोसे ही मैदान मारते रहे हैं। दलित और मुसलमान कांग्रेस की गणित के सबसे बडे सूत्र हैं, ऐसे में क्‍या मायावती और मुलायम साथ रहते हुए भी कांग्रेस को यह सूत्र दुबारा पकडने देंगे, बिल्‍कुल नहीं। ये दोनों तो इसलिए भी कांग्रेस का पंजा थामें हुए है कि इनकी गर्दन सीबीआई के फंदे में फंसी हुई है। यह फंदा कांग्रेस के हाथ में जबतक है तब तक ये दोनों कांग्रेस को हर बात पर बधाई ही नहीं वोट भी देते रहेंगे। जिस दिन यह फंदा कांग्रेस की जागीर नहीं रहा उस दिन ये दोनों उसे अपनी औकात दिखा देंगे। तब कांग्रेस के पास न ममता होंगी और न ही प्रणब दा जैसा नेता जो संकटमोचक बन इस संकट को टाल पाएंगा। असल में माया, मुलामय और नीतीश की चर्चा के साथ ही कांग्रेस के राहुल की चर्चा खत्‍म होती जा रही है। इस बार तो उनका जन्‍म दिन भी नहीं मनाया गया। पता नहीं वह कहां चले गए हैं। जिस चुनाव में उनके कौशल की चर्चा होनी चाहिए थी उस चुनाव में मायावती, मुलायम और नी‍तीश की चर्चा हो रही है। शायद इसीलिए कांग्रेस को खत्‍म करने की कसम को सीने से लगाए खुदमुख्‍तार भी उसे बधाई दे रहें हैं। संसद के बाहर ये कांग्रेस के विरोध के आदी है, अब केवल संसद के अंदर का अवसर खोज रहे हैं। 2014 में होने वाला लोकसभा चुनाव उन्‍हें यह अवसर देता दिख रहा है। कांग्रेस आगे बढने की बजाय पीछे जा रही है, एसे में यह संसद में खुद मुख्‍तार बनने को अपना दांव चलेंगे- तब कांग्रेस को पता चलेगा कि राष्‍टपति पद को भरने के लिए जो गड़ढे उसने खोदा असल में वे खाई बन गए हैं और उसके पास इसमें गिरने के अलावा कोई और विकल्‍प ही नहीं है।

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