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तेल की धार पर सियासत

सच
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यूपी के तीन सांसद। एक से बढ़कर एक। पहले राहुल गांधी। देश के भावी कांग्रेसी प्रधानमंत्री। काग्रेसियों की बिन लागत की अहम पूंजी। दलित बस्तियों के स्‍वयंभू तारणहार। भूमि अधिग्रहण कानून के मुंहबोले सुधारक। यह सब वह साबित कर चुके हैं। पिछले दिनों रायबरेली में उनकी मां सोनियों गांधी को विरोध झेलना पडा। वह पिछले रास्‍ते से लौटीं। बाद में राहुल गांधी अमेठी गए तो रसोई गैस वाला कांग्रेस का भस्‍मासुर तुरंत ही खडा हो गया। गरीब जनता ने अपने अमीर सांसद से चूल्‍हें की आग की तासरी पर सवाल किया तो राहुल को लगा सरकार गलत कर रही है। अगर यह नहीं लगता तो वह यह नहीं कहते कि साल में बारह सिलेंडर मिल सकते हैं। खबरचियों को मानों सबसे बडी खबर मिल गई। मिलती भी क्‍यों नहीं राहुल जो बोल दिए हैं तो मनमोहन को करना ही है। इसे कांग्रेसियों ने पूरे प्रदेश में जोर से फैलाना शुरू कर दिया जैसे गैस की समस्‍या समाप्‍त, इसलिए नहीं कि कोई आदेश जारी हुआ है, बल्कि इसलिए कि राहुल भैया की जुबान चली है, जिसे कोई काट नहीं सकता, लेकिन जनता को तेल की जगह उसकी धार से संतुष्‍ट करने वाले कांग्रेसियों को कौन समझाए की राहुल के बोल के अब कोई मोल नहीं रह गए हैं। उस समय राहुल कहां थे जब मात्र चार छह सिलेंडर की बात चली, अमेठी में जाने के बाद ही राहुल को साल में बारह गैस क्‍यों जरूरी जान पडे और जब राहुल ने बोल दिया तो गैस के मुदुदे पर सभी कांग्रेसी गूंगे तेल यानी वर्तमान आदेश के बजाए राहुल गांधी के बयान यानी तेल की धार दिखाने में जुट गए हैं। पता नहीं मीडिया ने भी इसे खास तवज्‍जों क्‍यों दे दिया। आये दिन राहुल पर वक्‍त खर्च किया जा रहा है, पहले मंत्रीमंडल विस्‍तार में उनकी टीम मजबूत होगी पर समय और शब्‍द बेवजह खर्च किए गए। इसके बाद संगठन में उनकी हैसियत बढेगी पर वक्‍त और जगह बरबाद किया जा रहा है। क्‍या संगठन और देश की किसी खास सीट पर बैठने मात्र से राहुल गांधी की सोच बदल जाएगी। क्‍या इस तरह की किसी सीट के आने से उनकी हैसियत बढ जाएगी। मैं विचारकों से पूछना चाहता हूं कि अगर महासचिव रहते राहुल गांधी संगठन में कोई आदेश दें तो क्‍या उसे रोकने की हैसियत किसी पदाधिकारी की है, वह भी तब जबकि अघ्‍यक्ष उनकी मां सोनिया गांधी ही हैं। इसी तरह अगर सरकार को राहुल गांधी कोई भी निर्देश दें तो क्‍या मनमोहन सिंह की हैसियत है कि उसे टाल देंगे और टाल भी देंगे तो अपने पद पर बने रह पाएंगे। अगर यह संभव है तो मनरेगा का श्रेय राहुल गांधी को क्‍यों दिया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह योजना सरकार ने लागू कि और राहुल गांधी सरकार में कुछ भी नहीं थे और न हैं। ऐसे प्रचार से राहुल का कद बढ नहीं रहा है बल्कि घट रहा है और वे हवाहवाई नेता ही साबित हो रहे हैं, लेकिन महज रहबर की चाल चलने वाले राहुल गांधी को खबर बनाने से कोई बाज आए तो कैसे, वह नेहरू परिवार के जो ठहरे।
दूसरे सांसद हैं भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्‍तान अजहर। मुरादाबाद इनपर मुरीद होकर इन्‍हें सांसद बना दिया। बाद में कई मरतबा लोगों को मोमबत्‍ती की रोशनी में इन्‍हें खोजना पडा, लेकिन 3 सोल में तीन चार बार से अधिक मुरादाबाद में नहीं दिखे। ऐसे में इनके प्रतिनिधि भी मुंह छुपाने में जुट गए। हाल ही में इनके क्रिकेट खेलने पर लगे आजीवन प्रतिबंध को हटाने पर एक प्रदेश की हाइकोर्ट का फैसला आया तो इनके प्रयोजक धूल झाडकर खडे हो गए। पटाखे छोडे, मिठाइयां बांटे और उनकी लम्‍बी उम्र की हर तरह से कामना कर ऐसे भाषण देने में जुटे जैसे अजहर देश के सर्वश्रेठ सांसठ हो गए हों और उनके संसदीय क्षेत्र मुरादाबाद को सार्वधिक विकसित संसदीय क्षेत्र का तमगा मिल गया हो। क्रिकेट के ग्राउंट पर या क्रिकेट को ओढने बिछाने वाले समाज में यह खबर केक काटती दिखती तो शायद चल भी जाता, लेकिन सियासत की जमीन पर विकास का पहिया पंचर करने वाले अजहर की जय से तो यही लगा कि मुरादाबाद की मलीन बस्तियों से न तो अजहर के दीवाने परचित हैं और न ही मीडिया। वरना सांसद बन चुके अजह की जय विजय को विकास के ताराजू पर ही तोला जाता, लेकिन प्रायोजक यह जानते है कि तेल के बल पर नहीं तेल की धार के बल पर ही अजहर के क्षेत्र में मुंह दिखाया जा सकता है। ऐसे में यहां तेल की धार दिखाई जा रही है और विकास तेल बेंच रहा है।
तीसरी सांसद है जयाप्रदा। यहां भी इन दिनों तेल की धार ही दिखाई जा रही है। अमर सिंह के आराम पर जाने के बाद जया की चाल भी सुस्‍त पड गई है, उनके विरोधी आजम खां की गति तेज हुई है तो जया की गति धीमी होना लाजमी है, लेकिन पिदले दिनों उनके निजी सियासी प्रवक्‍ता ने तो हद ही कर दी। वित्‍तीय वर्ष के छह माह बीतने पर वह प्रेस वार्ता का आयोजन किए तो लगा सांसद निधि और रामपुर के विकास पर अपना नजरिया प्रस्‍तुत करेंगे, रामपुर की जनता को उनके सांससद जयाप्रदा का कोई एक से अधिक विकास का संदेश देंगे, लेकिन यह क्‍या, उन्‍होंने कन्‍नड पिफल्‍म में जयाप्रदा के प्रदर्शन का एक एक कर खांका खींचा। बताया उनकी कन्‍नड पिफल्‍म पंद्रह करोड का व्‍यवसाय कर चुकी है और उन्‍होंने इसमें उम्‍दा प्रदर्शन किया है। पूरी प्रेसवार्ता को मीडिया ने भी ऐसे लिया जैसे रामपुर मुंबई हो और जया यहां की टाप हिरोई। अब उनके प्रतिनिधि को कौन बताए कि अगर कुछ समय के लिए रामपुर के लोग विकास की बात भूलकर जयाप्रदा की इस कन्‍नड पिफल्‍म को देखना भी चाहें तो उन्‍हें कन्‍नड को हिंदी में कौन समझाएगा। शायद उनके प्रतिनिधि भी नहीं, क्‍योंकि वह भी कन्‍नड नहीं जानते। हां मुम्‍बई वाले खुश हो सकते हैं कि उनकी अदाकारा अब रामुपर की गलियों में घूमने के बजाय पिफल्‍मों में समय खर्च कर रही है, लेकिन तेल की यह कन्‍नडी धार रामुपुर के लोगों को समझ में नहीं आई, समझ में आती भी कैसे, यहां के लोग तेल देखते हैं तेल की धार नहीं।

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