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मजधार में फंसी वोट के बदले नोट की सियासत

सच
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सप्ताह भर से कन्या विद्या धन को लेकर शुरू बेटियों के विरोध प्रदर्शन पर सोमवार को रामपुर में एक ही मंच से सरकार की ओर से दो खास बयान सार्वजनिक हुए। पहले प्रदेश के कबीना मंत्री आजम खां ‘विरोध की तस्वीरों में मुरादाबाद की सड़कों पर घूमने वाली कुछ महिलाए दिखी हैं, यह साजिश है, इससे सरकार अपना फैसला नहीं बदलेगी। आधे घंटे पश्चात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ‘छात्राएं सपा का विरोध नहीं कर रही हैं, सरकार से अपना हक कन्या विद्या धन मांग रही हैं, जो पात्र होंगी उन्हें उनका हक मिलेगा।
तस्वीर साफ है, सपा सरकार के माथे पर छात्रों के पहले और नए तरीके के विरोध (लाल सलाम) को लेकर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। यह पूरी तरह लाजमी भी है। क्योंकि सपा ही पहली पार्टी है जो छात्र और युवा वोटरों पर एकतरफा दावा ठोंकती है। इसके लिए उसने लैपटाप, टैबलेड, हमारी बेटी उनका कल, विद्या धन एवं छात्र संघ चुनाव जैसी सौगात युवा व छात्रों को दी है। इससे उसको विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें हरित पट्टी यानी पश्चिमी यूपी से ही मिली हैं। इधर से उसको संसदीय चुनाव में भी मुस्लिम वोटों की बदौलत व्यापक कामयाबी की आस है। इसीलिए प्रदेश स्तर पर शुरू होने वाली हमारी बेटी उनका कल योजना को लखनऊ के बजाय मुख्यमंत्री ने रामपुर से लांच किया। लेकिन यहीं पर उनका वास्तविकता से भी साक्षात्कार हुआ। सप्ताह भर पहले ही जहां उन्हें मुरादाबाद जैसे मुस्लिम वोट वाले शहर के छात्रसंघ चुनाव में बीस फीसद वोट भी नहीं पाने की खबर मिली थी वहीं रामपुर में कदम रखते ही बेटियों के भारी विरोध की तस्वीर देखने को मिली। यह तस्वीर किसी एक कस्बे व जिले की नहीं थी, बल्कि पश्चिमी यूपी में आयोजित पहले कन्या विद्या धन के वितरण समारोह से जुड़े सभी पांचों जिलों की थी। बेटियों ने न केवल सांकेतिक विरोध किया, बल्कि सत्ता को रामपुर तक पहुंच कर इस कदर छकाया कि उन्हें ढाई घंटे तक नजर बंद रखना पड़ा, उनपर लाठियां भी चलानी पड़ी, उनके खिलाफ संभल में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करना पड़ा और अंत में मुख्यमंत्री को खुद बयान तक देना पड़ा। उन्हें आजम खां के बयान को पीछे करते हुए छात्राओं के गुस्से को वाजिब करार देते हुए उनको आश्वस्त करना पड़ा। खैर मुख्यमंत्री चले गए और छात्राओं का गुस्सा कुछ ठंडा पड़ा, लेकिन सपा की इस वोट के बदले नोट की नीति को एक बड़ी चुनौती मिल गई, जिससे पार पाना शायद मुश्किल है। वह यह है कि पहली बार किसी मुददे को लेकर बेटियां मुख्यमंत्री के समारोह के खिलाफ सड़क पर उतरी, उन्हीं की नीति को हथियार बनाते हुए ‘हमने भी सरकार को वोट दिया है, हमें भी नोट (कन्या विद्या धन)चाहिए, सपा सरकार को जिता सकते हैं तो हरा भी सकते हैं। इसने स्पष्ट कर दिया कि दलों के स्तर पर नोट के बदले वोट की राजनीति ने अब वोट की नई पौध को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इससे उपजा असंतोष न केवल पूरब से पश्चिम तक पहुंच सकता है, बल्कि सपा की सियासी राह को भी मुश्किल में डाल सकता है। आने वाले कल में यह बात और तब स्पष्ट होती नजर आएगी जब मुख्यमंत्री शेष मंडलों में चेक वितरण अभियान के अन्य पड़ावों पर पहुंचेंगे।

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