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हे पुत्रों तुम्ही भगीरथ, उबारो मुझे

सच
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आओ बेटों, मुझे यकीन था, आज जरूर आओगे। जब भी कार्तिक पूर्णिमा आती है, तुम मेरी राह पकड़ते हो। तुमको पूर्णिमा स्नान का इंतजार होता है, मुझे तुम्हारा। आखिर, मेरा तप-जप सब तुम्हारे लिए ही तो है। मैं परलोक से आई ही तुम्हारे लिए। भगीरथ तुम्हें बहुत चाहते थे, मुझे ले आए। अब वे नहीं हैं, मैं हूं, तुम्हारी जिम्मेदारी मेरी है। सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, केवल मेरा आंचल ओढ़ लो, दो चार डुबकी लगा लो। आखिर.. इसी से तो हमारे पास अब भी शेष बचा है पुण्यदायिनी का पुण्य शब्द..।
अरे वह देखो, घाटों पर बेटियां भी आई हैं। सभी आए हैं। मुझे भी याद आ रहा है तुम से अपना नाता, अपनी गाथा। तब तुम्हारे पास पानी नहीं था। भगीरथ के कहने पर तुम्हारे पास आ गई। फिर, तुम्हारे पशुओं का गला तर करने लगी, तुम सभी पशुधन के मालिक बन गए। दूध को धन से जोडऩे के लिए रास्ता खोजने लगे। व्यापार की डगर तलाश करने लगे। मैं रास्ता भी बन गई। तुम नावों पर बैठ मेरी गोदी के सहारे आने जाने लगे। समय खेती-बाड़ी का आया तो खेतों की प्यास भी शुरू में मैंने ही बुझाई। नहरों के रूप में खेतों तक गई।। फिर मैं पनचक्की में पिस कर तुम्हारे लिए बिजली बनने लगी। रामपुर में कोसी के रूप में अब भी तुम्हारे पास हूं। मुरादाबाद में रामगंगा, गागन के नाम से ही सही तुम्हारे साथ हूं। अमरोहा में तो अब भी अपने मूल स्वरूप में तुम्हारी बाट जोह रही हूं।
सोच रही हूं, कुछ मांगूं। भगीरथ ने मुझे तुम्हारे पास बुलाया तो मैंने गति रोकने का तरीका मांगा। फिर शंकर ने जटाओं में बांध कर मुझे तुम्हारे पास पहुंचाया। मैं तुम्हारे साथ तबसे बनी रही, लेकिन अब धैर्य टूटने लगा है। काया कमजोर हो गई है। आंचल तो जैसे मैला हो गया है। मैं इसे तुम्हारे लिए फैलाती तो जरूर हूं, लेकिन डरती हूं, कहीं तुम पुण्य के इस आंचल पर रोग व्याधि फैलाने का तोहमत न लगा दो।
देखो न.. कचरे ने मेरा क्या हाल कर दिया है। गंदगी ने तो तुम्हारे हिस्से का स्वच्छ पानी भी काफी हद तक पी लिया है। अब तुम्हे देने के लिए पुण्य शब्द से अधिक मेरे पास कुछ भी तो नहीं है। सोचती हूं, कभी तुम सबके लिए मैंने कलकल, निर्मल, अविरल जैसे शब्द बुना, स्वच्छता के मामले में तुम्हारी परचम बनी। समूचे विश्व को स्वच्छंदता का माने बताया। अब क्या करूं..।
बेटों, मुझे मेरे लिए नहीं, अपने लिए तो बचा लो। बचाने की जिम्मेदारी चंद अधिकारियों पर मत डालो। वह नौकरी करने आए हैं, उन्हें तुम्हारे व मेरे बीच का रिश्ता क्या मालूम। नेताओं के चंद वादों पर भी मत जाओ। वह गजरौला, मुरादाबाद, शाहबाद में न सही हरिद्वार और इलाहाबाद में मेरा आंचल ओढ़ लेंगे। स्वयंसेवियों पर भी ज्यादे भरोसा न करो। वे तुम्हारे छोटे शहरों में भला मेरी सेवा क्यों करेंगे। बस आज एक संकल्प ले लो। तुम ही बचाओगे मुझे। जहां से चल कर जहां तक आए हो वहां तक उबारोगे मुझे। जाने अंजाने में जो कचरा मेरे आंचल में फेंक देते थे अब नहीं फेंकोगे। हर कदम पर लोगों को ऐसा ही करने को कहोगे। बताओगे, रामपुर में कोसी ने साथ छोड़ दिया, प्रदूषण ने उसे कैंसर सरीखा बना दिया। सम्भल में भैसरी तो बेगानी हो चली, यहां के लोग पूर्णिमा पर बुलंदशहर और गजरौला का रास्ता पकड़ते हैं। मुरादाबाद में रामगंगा भी स्वच्छ जल के लिए तड़प रही है। ये सभी मेरे ही रूप हैं। अब मैं खुद गजरौला में भी भरोसे की नहीं रही।
बेटों, पुण्य तो तुम्हारा अधिकार है। मैं इसीलिए परलोक से इहलोक को आई। कभी लौटी नहीं, लौटूंगी भी नहीं। डर है तो केवल इतना कि कहीं प्रदूषण से मर न जाऊं। भगीरथ को दिए वचन से न चाहते हुए मुकर न जाऊं। खैर मुझे अपने बेटों पर भरोसा है, तुम सभी पर मुझे विश्वास है, एक दिन तुम्ही भगीरथ बनोगे, मुझे बढ़ते प्रदूषण से उबारोगे। आज पूर्णिमा स्नान पर, अभी और यहीं से इसकी शुरूआत करोंगे। करोगे क्यों नहीं, आखिर मैं तुम्हारी मां जो ठहरी, गंगा मां। वही गंगा जिसकी स्वच्छता पर तुम्हे गर्व रहा है, है और रहेगा..।

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